अखिलेश यादव की देवा शरीफ में चादर भेजने की परंपरा : अकीदत या सिर्फ एक औपचारिकता?

नगराम टाइम्स/तक़ी मुस्तफा

बारांबकी :समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हर साल की तरह इस बार भी देवा शरीफ दरगाह में उर्स के अवसर पर चादर भेजी। इस बार भी यह चादर पार्टी के अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश सचिव कय्यूम प्रधान के हाथों भेजी गई। अखिलेश यादव के इस कदम को अमन-चैन का संदेश देने वाला माना जा रहा है, लेकिन जनता के बीच यह चर्चा का विषय भी बना है कि यह वास्तव में अकीदत है या सिर्फ एक औपचारिकता।

हाजी वारिस अली शाह की मजार, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानी जाती है, पर अखिलेश यादव का स्वयं न जाना सवाल उठाता है। हाजी वारिस अली शाह ने “जो रब है वही राम है” का संदेश दिया, जो धर्म और समुदायों के बीच की खाई को पाटने का प्रयास था। ऐसे में अखिलेश यादव द्वारा खुद दरगाह पर न जाकर चादर भेजना केवल दिखावा प्रतीत होता है। जनता में यह सवाल उठता है कि क्या अखिलेश यादव की यह परंपरा सच्चे धार्मिक आस्था का प्रतीक है या यह केवल मुस्लिम वोट बैंक के मोहल्ले का प्रेम है?

इस साल भी अन्य कद्दावर नेताओं जैसे अरविंद सिंह गोप, सुरेश यादव, फरीद महफूज किदवई, राकेश वर्मा आदि के बजाए कय्यूम प्रधान के हाथ चादर भेजना भी आलोचना का विषय बना है। जनता का कहना है कि यदि अखिलेश यादव सच्ची अकीदत रखते हैं, तो उन्हें खुद चादर लेकर जाना चाहिए, ताकि समाज में सच्चा संदेश जा सके।

आज के दौर में जब नेता खुद धार्मिक स्थलों पर जाकर श्रद्धा व्यक्त करते हैं, अखिलेश यादव का सिर्फ चादर भेजना औपचारिकता जैसा लगता है। अवाम में चर्चा है कि यह परंपरा महज मुसलमानों को साधने की एक राजनीतिक चाल बनकर रह गई है। जनता यह देखना चाहती है कि समाजवादी पार्टी का यह कदम सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हो, न कि सिर्फ वोट बैंक साधने का प्रयास।

अखिलेश यादव को इस परंपरा को औपचारिकता से परे लेकर जाना चाहिए और खुद दरगाह पर जाकर अमन-चैन की दुआ करनी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होगा कि वे सांप्रदायिक सौहार्द्र को लेकर गंभीर हैं, न कि सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए इसे निभा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!