नगराम टाइम्स ब्यूरो/तकी हसनैन
जहेज़ एक सामाजिक बुराई है जो सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा बनी हुई है। यह प्रथा कई घरों को तोड़ चुकी है, अनगिनत परिवारों को कर्ज़ में डुबा चुकी है, और माता-पिता को उम्रभर की परेशानी में डाल चुकी है। एक समय था जब समाज में जहेज़ की माँग केवल लड़के वालों की ओर से होती थी, जो कई बार बेटी के परिवार पर भारी बोझ बन जाती थी। लेकिन, आज एक नई और अजीब परिस्थिति ने जन्म ले लिया है—अब खुद लड़कियां ही अपने माता-पिता पर बड़े और महंगे जहेज़ की माँग का दबाव डाल रही हैं।

जहेज़ का बढ़ता हुआ लालच
जहेज़ के नाम पर सोने की ज्वेलरी, महंगी कार, लक्ज़री मैरिज हॉल, लाखों की सजावट, और बेशुमार खर्चों की ज़िद अब लड़कियां खुद कर रही हैं। जहाँ पहले इन माँगों का दबाव केवल लड़के वालों की ओर से होता था, अब स्थिति यह बन चुकी है कि बेटियाँ स्वयं ही इन वस्तुओं की माँग करने लगी हैं। यह बदलाव समाज में एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि जिन बेटियों को समाज में अपने माता-पिता का सहारा बनना चाहिए, वे उल्टा उन पर बोझ बनती जा रही हैं। माता-पिता जो अपने जीवन की पूरी पूंजी अपने बच्चों की शिक्षा और उनके अच्छे भविष्य के लिए समर्पित करना चाहते हैं, वे अब इन अनावश्यक माँगों को पूरा करने में मजबूर हो रहे हैं।
माता-पिता पर बोझ का असर
इस बदली हुई स्थिति का सबसे बड़ा असर माता-पिता पर पड़ता है। आमतौर पर, एक साधारण परिवार में माता-पिता अपनी मेहनत की कमाई से बच्चों को पालते-पोसते हैं, उनकी शिक्षा पर खर्च करते हैं, और उनकी शादी के लिए पैसे जोड़ते हैं। लेकिन जब बेटियाँ खुद महंगी कार, शानदार वेडिंग डेकोर और सोने की ज्वेलरी की माँग करती हैं, तो यह माता-पिता के लिए बेहद कठिन हो जाता है। यह दबाव उन्हें कर्ज़ लेने पर मजबूर कर सकता है, यहाँ तक कि कई बार अपनी संपत्ति बेचने या दूसरों के आगे हाथ फैलाने की नौबत भी आ जाती है।
जहेज़ का भूत और बेटियों की जिम्मेदारी
इस बदलते परिवेश में यह ज़रूरी है कि लड़कियां समझें कि उनकी माँगें उनके माता-पिता पर किस प्रकार का बोझ डाल रही हैं। उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि उनका असली गहना उनके संस्कार, शिक्षा, और आत्मनिर्भरता हैं, न कि सोने की ज्वेलरी या लक्ज़री कार। अगर बेटियाँ अपनी माँगों को सीमित कर, शादी को सादगी से निभाने पर जोर दें, तो यह न केवल उनके माता-पिता के लिए वरदान साबित होगा, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव का कारण भी बनेगा।
समाज और बेटियों को हिदायत की ज़रूरत
चाहे हिंदू समाज हो या मुस्लिम, जहेज़ की यह बुराई हर समुदाय में पाई जाती है, और हर माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों के लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं। लेकिन बेटियों का भी यह फर्ज बनता है कि वे इस बात को समझें और अपने माता-पिता पर अनावश्यक दबाव न डालें। चाहे किसी भी धर्म से जुड़ी बेटियाँ हों, उनका यह कर्तव्य बनता है कि वे शादी जैसे पवित्र रिश्ते को खर्चों और आडंबर में डुबोने के बजाय इसे सादगी और आत्मीयता से निभाएँ। यह समझें कि माता-पिता पर इस तरह की माँगों का दबाव डालना न केवल उनके लिए बोझ बनता है बल्कि उनके जीवन की शांति और सुख को भी छीन सकता है।
समाधान और समाज का योगदान
जहेज़ को रोकने के लिए समाज के हर व्यक्ति को अपना योगदान देना होगा। सबसे पहले, यह ज़रूरी है कि माता-पिता अपनी बेटियों को सिखाएं कि उनकी असली दौलत उनका चरित्र, आत्मनिर्भरता, और शिक्षा है। बेटियों को भी समझना चाहिए कि सादगी से की गई शादी न केवल उनके माता-पिता के लिए आसान होती है, बल्कि इससे समाज में एक अच्छा संदेश भी जाता है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि माता-पिता अपनी बेटियों को महंगी चीजों की माँग करने से रोकें और उन्हें समझाएं कि असली खुशी रिश्तों में होती है, न कि भौतिक चीज़ों में।
“जहेज़ की यह बुराई तभी समाप्त हो सकती है जब समाज के हर व्यक्ति, विशेषकर बेटियाँ, अपने कर्तव्यों को समझें और माता-पिता पर अनावश्यक दबाव डालने से बचें। आइए, मिलकर इस समाज को जहेज़ मुक्त बनाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाएँ और अपने जीवन में सादगी और ईमानदारी को अपनाएँ।“