नगराम टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ : हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का शुक्रवार की शाम 7:30 बजे निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से न्यायपालिका, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में गहरी शून्यता आ गई है। जस्टिस रज़ा को उनके साहसिक फैसलों, सामाजिक प्रतिबद्धता और छात्र आंदोलनों में सक्रिय भूमिका के लिए जाना जाता है।
उनकी कहानी केवल एक न्यायाधीश की नहीं, बल्कि एक संघर्षशील, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्ति की कहानी है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज के सबसे जरूरी मामलों और आंदोलन में बिताई।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का जन्म एक शिक्षित और प्रगतिशील परिवार में हुआ। उनकी शिक्षा की शुरुआत से ही उनके विचारों में समाजसेवा और शिक्षा के महत्व की नींव रखी गई। उन्होंने जुबली कॉलेज से इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1956 में लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।
लखनऊ विश्वविद्यालय में उनकी शिक्षा के दिनों में ही उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा और ज्ञान के बिना समाज में बदलाव संभव नहीं है। विश्वविद्यालय के माहौल, शिक्षकों और छात्रों से मिले अनुभवों ने उनके व्यक्तित्व को नया आयाम दिया।
छात्र जीवन और आंदोलनकारी व्यक्तित्व
छात्र जीवन में ही जस्टिस रज़ा ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का काम शुरू कर दिया। 1958 में, विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के खिलाफ एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के दौरान वे लखनऊ, फैजाबाद, बनारस और मथुरा की जेलों में महीनों तक बंद रहे।
उनकी इस आंदोलनकारी भूमिका ने उनकी भविष्य की दिशा तय की। छात्रों की समस्याओं को प्राथमिकता देकर उन्होंने न केवल शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया, बल्कि संघर्ष के लिए भी लोगों को एकजुट किया।
न्यायपालिका में उल्लेखनीय योगदान
जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का करियर न्यायालय के क्षेत्र में भी बहुत ही प्रशंसनीय और प्रेरणादायी रहा। वे एक ईमानदार, निष्पक्ष और साहसी न्यायधीश के तौर पर जाने गए। उनके फैसलों में समाज के कमजोर वर्गों की आवाज को हमेशा जगह मिली। उनके निष्कलंक फैसलों से यह साबित हुआ कि उन्होंने हमेशा संविधान और कानून को सर्वोपरि माना।
जस्टिस रज़ा का कार्यकाल न्यायिक सुधारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण रहा। उनके निर्णयों की वजह से कई मामलों में न्याय की उम्मीदें जगीं।
शिया कॉलेज में प्रशासक के रूप में योगदान
2014 में, तत्कालीन राज्यपाल श्रीराम नाइक ने जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा को लखनऊ के शिया कॉलेज का प्रशासक नियुक्त किया। कॉलेज में मैनेजमेंट कमिटी को लेकर पिछले एक वर्ष से विवाद चल रहा था। ऐसे समय में जस्टिस रज़ा की नियुक्ति हुई। उनके मार्गदर्शन में कॉलेज और ट्रस्ट से जुड़े सभी मामलों की जांच की गई और विवादों को सुलझाया गया।
जस्टिस रज़ा ने अपनी ईमानदारी और सूझ-बूझ से शिया कॉलेज की संपत्ति को पटरी पर लाया। उनके प्रयासों के कारण कॉलेज का प्रशासन सुचारू रूप से संचालित हुआ। उनकी भूमिका ने शिक्षा के क्षेत्र में स्थिरता और प्रबंधन क्षमता का परिचायक साबित किया।
पारिवारिक जुड़ाव और अन्य विवरण
जस्टिस रज़ा की पारिवारिक स्थिति भी समाज में उनके प्रभाव को दर्शाती है। उनके दामाद कामरान रिजवी, एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं। कामरान रिजवी प्रशासन के क्षेत्र में काम करते हुए सामाजिक सुधारों में योगदान दे रहे हैं। उनके इस पारिवारिक जुड़ाव से जस्टिस रज़ा के न्यायिक दृष्टिकोण में भी समाज के विभिन्न पहलुओं के प्रति गहरी समझ और सामाजिक जुड़ाव देखने को मिला।
निधन पर शोक संवेदनाएं
जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा के निधन पर पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन पर भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी आफताबे शरीयत मौलाना कल्बे जवाद नकवी, 1200 मक्तबों के बोर्ड तंजीमुल मकातिब के सचिव मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहसिना किदवई, छात्र नेता और पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप, उनके साथी चाचा अमीर हैदर एडवोकेट और पूर्व मंत्री अम्मार रिजवी ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है।
चाचा अमीर हैदर एडवोकेट ने कहा कि उनके आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उनके दोस्त और संघर्ष के साथी जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का जाना उनके लिए निजी हानि था। उनकी आंखों में गहरा दर्द था, और उन्होंने अपने दोस्त की याद में कहा, “हैदर साहब मेरे लिए एक सच्चे साथी और प्रेरणा के स्रोत थे। उनका जाना एक ऐसा दुख है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।“
संघर्ष और छात्र आंदोलन का इतिहास
जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का जीवन संघर्षों से भरा था। 1953 में जब उन्होंने नैनीताल में हुई वाइस चांसलरों की बैठक में भाग लिया, तो छात्र संगठनों के भंग करने और विश्वविद्यालयों में सरकारी हस्तक्षेप के विरोध में आंदोलन शुरू किया। उन्होंने छात्रों के हित में भूख हड़ताल की और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ भी खुलकर आवाज उठाई।
जेल यात्रा और आंदोलन उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा रहे। विश्वविद्यालय छात्र आंदोलनों के चलते उनकी गतिविधियों से छात्रों को नया जोश मिला और अंततः उनके प्रयासों से कई आंदोलन सफल भी हुए।
जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा का निधन समाज, शिक्षा, और न्याय व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उनका जीवन संघर्ष, न्यायप्रियता और समाजसेवा की मिसाल प्रस्तुत करता है। उनकी यादें और फैसले हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगे।
उनकी अंतहीन सेवाओं और संघर्षों के लिए उन्हें सदा याद किया जाएगा। उनकी विरासत उनकी शिक्षाओं और उनके साहसिक फैसलों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत रहेगी।